मैसूर दशहरा
विश्व प्रसिद्ध मैसूर दशहरा
की उत्पत्ति 15 सदी
में विजयनगर साम्राज्य के समय हुई थी. विजयनगर के पतन के बाद मैसूर के राजा
वाडियार
ने 1610
में इस रंगीन और धार्मिक उत्सव को मानाने की प्रथा की शुरुआत की और बाद में वाडियार राजाओं के तत्वावधान में यह त्यौहार पूरे धूमधाम से मनाया जाने लगा.
दस दिनों तक चलने वाला मैसूर दशहरा विजयदशमी के दिन समाप्त होता है. मैसूर दशहरा को नाद हब्बा' या राज्य के त्योहार के रूप में घोषित किया गया है
किंवदंती है कि
मैसूर का राक्षस 'महिषासुर' का वध
वादियारों की कुल
देवी चामुंडेश्वरी
के द्वारा किया
गया था. इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इसे विजयादशमी के नाम से जाना जाता है।
दशहरा के समय
रौशनी से सुजज्जित
मैसूर महल और
पूरे शहर का दृश्य देखने लायक
ही बनता है.
सितम्बर १८०५ में वाडियार राजाओं ने
मुग़ल शाशकों के
तर्ज पर शाही
परिवार के सदस्यों,
यूरोपीय, महल के
अधिकारियों, शाही याजकों
और प्रभुध नागरिकों
के लिए एक
विशेष दरबार लगाने की शुरुआत की. धीरे
धीरे यह त्योहार
शाही परिवार के
एक परंपरा के
रूप में स्थापित
हो गया और
नलवाड़ी कृष्णराज वाडियार (1902-1940) के
शासन के दौरान
अपने चरम पर
पहुंच गया
कोणार्क नृत्य महोत्सव, उड़ीसा
कोणार्क का सूर्य मंदिर एक विश्व विरासत
स्थल के रूप
में प्रसिद्ध है.
ओडिशा राज्य में
स्थित कोणार्क में
प्रतिवर्ष दिसम्बर के महीने में शास्त्रीय नृत्य और संगीत
का एक भब्य
उत्सव का आयोजन
किया जाता है.
देश भर से
आये नर्तकी यंहा
खुले सभागार में
अपनी कला का
पर्दर्शन करते हैं. इस
दौरान ओडिसी, भरत
नाट्यम, मणिपुरी, कथक
और चोऊ नृत्यों का
आयोजन होता है
जो एक बिहंगम
दृश्य प्रस्तुत करता
है और अत्यधिक कर्णप्रिय हैं.
साथ-साथ कोणार्क उत्सव
के त्योहार के
दौरान एक शिल्प
मेला भी आयोजित
किया जाता है.
इस मेले में
अनेक प्रकार के
हस्तशिल्प और व्यंजनों का
आनंद प्राप्त किया
जा सकता है.
यह उत्सव उड़ीसा
पर्यटन और ओडिसी
रिसर्च सेंटर द्वारा
संयुक्त रूप से आयोजित
किया जाता है.
गुरु पर्व
सिखों के संस्थापक गुरु नानक देव की जयंती सिखों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. ननकाना साहिब
(लाहौर
में
गुरु नानक का
जन्म स्थल) में एक भव्य मेले और उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमे भारत और विदेशों से हजारों की संख्या में सिख एकत्रित होते हैं. इस दिन पूरे देश के गुरुद्वारों में सिखों के
पवित्र धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ
साहिब का अखण्ड
पाठ होता है
और दीपक जलाये
जाते हैं. जुलूस
निकालने के साथ
लंगर भी लगाये
जाते है जंहा
मुफ्त भोजन और प्रसाद वितरित किये जाते हैं.
सोनपुर मेला, बिहार
यह विश्व प्रसिद्ध पशु
मेला गंगा और
गंडक की पवित्र
नदियों के संगम
पर स्थित सोनपुर
के एक विशाल
मैदान में आयोजित
किया जाता है,
इस मेले के
जीवंत बाजार में
अनेक किस्मो के
पशु और वस्तुओं
की बिक्री होती
है. सोनपुर मेले
में हाथियों की
बड़ी संख्या में
बिक्री होती है.
इस समय विभिन्न
प्रकार के लोक
नाटक, खेल और
बाजीगर मेले में
देखे जा सकते
हैं.
पुष्कर मेला पुष्कर, राजस्थान
अजमेर से ११ किलोमीटर के दूरी में स्थित पुष्कर में इस मेले का आयोजन प्रतिवर्ष होता है इस सांस्कृतिक,
व्यापारिक और धार्मिक मेले में राजस्थानी पुरुष और महिलाएं अपने रंगीन
पारंपरिक पोशाक में यंहा आते हैं. इस समय यंहा पर भगवा वस्त्र धारण किये हुए राखों से
लिप्त
साधुओं का जमावड़ा
लगता है. इसी समाया यहां पर पशु मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में सजे हुए बैल,
गाय, भेड़, बकरी, घोड़े और ऊंट देखे जा
सकते हैं. यह
शायद दुनिया में सबसे बड़ा पशु मेला है जो
भारत और पुरे
विश्व से प्राय
1,00,000 से
अधिक
लोगों को अपनी और आकर्षित करता है. धार्मिक अनुष्ठानों और व्यापार के अलावा, यंहा पर
लोग भरी संख्या
में सांस्कृतिक और खेल के कार्यक्रमों में भाग लेते हैं.
मुहर्रम
यह त्योहार पैगंबर
मोहम्मद
के पौत्र हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया जाता है. यह त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मुसलमानों विशेष रूप से शिया समुदाय के द्वारा मनाया जाता है. खुबसूरत ताजिया, शहीद कब्र की बेहतरीन प्रतिकृतियां जुलूस सड़कों पर निकला जाता है. लखनऊ और
हैदराबाद के ताजिया
अपने भब्यतय के
लिए प्रसिद्ध हैं.
लखनऊ, दिल्ली, आगरा और जयपुर जैसे स्थानों
में भव्य पैमाने में जुलूस आयोजित किये जाते हैं. लोग अपने
सिने को पिटते
हुए मातम मानते
है और या
हुसैन बोलते हैं.
लखनऊ महोत्सव,
लखनऊ, उत्तर प्रदेश
25 नवंबर और 5 दिसंबर के बीच मनाया जाने वाला यह उत्सव प्राचीन शहर अवध की वैभव को
प्रितिबिम्ब करता है.
रंगारंग जुलूस, पारंपरिक नाटक, प्रसिद्ध लखनऊ घराने की शैली में कथक नृत्य, गजल के साथ सारंगी और सितार वादन, क़व्वाली और ठुमरी एक त्यौहार
का वातावरण निर्माण
करता है.एक्का दौड़, पतंगबाजी, मुर्गों की लड़ाई और अन्य पारंपरिक खेल बीते नवाबी दिनों में ले जाता है. इस समय एक शिल्प मेले का भी आयोजन होता है जन्हा आप खुशबुदार ब्याजनों का आन्नद ले सकते हैं.
का
पोम्ब्लांग नॉन्गक्रेम, शिलांग, मेघालय
का पोम्ब्लांग नॉन्गक्रेम खासियों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है. इस पांच दिवसीय त्योहार हर साल नवंबर में शिलांग के निकट ख्य्रेम श्र्यिएम्शिप की राजधानी स्मिट में का बली सिन्षर देवी
को
अच्छी फसल और समृद्धि के लिए धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है. इस त्योहार
के समय शिलांग चोटी के देवता को बकरे की बलि दी जाती है. खासी
पुरुष और महिलाये पारंपरिक वस्त्र में सजकर
यंहा का प्रसिद्ध
नॉन्गक्रेम
नृत्य करते हैं.
हम्पी महोत्सव, कर्नाटक
नवंबर के पहले सप्ताह में आयोजित
इस तीन दिन
तक चलने वाले नृत्य और संगीत के उत्सव के समय
हम्पी जिवंत हो उठता
है. वर्तमान में
खंडहरों में परिवर्तित
हम्पी कभी शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता
था. कर्नाटक सरकार द्वारा
आयोजित
हम्पी उत्सव नृत्य, नाटक, संगीत, आतिशबाजी, कठपुतली शो और शानदार जुलूसों का समिश्रण
है जो बीते
युग
की भव्यता को दर्शाता है. सुसज्जित हाथियों और घोड़ों की कतार और सैन्य वेशभूषा में तैयार पुरुषों का दृश्य दर्शनीय होता है. लाल, पीले, नीले और सफेद कपड़े में लिपटे हुआ गोपुर हम्पी के गलियों में स्थापित किये जाते है.
राजगीर नृत्य महोत्सव, बिहार
बिहार
में स्थित राजगीर मगध
साम्राज्य
की प्राचीन राजधानी थी और
दोनों बौद्ध और
जैन धर्म के
अनुयायियों
के लिए एक
पवित्र स्थल है.
बिहार का पर्यटन
विभाग
हर वर्ष राजगीर में नृत्य और संगीत का एक रंगारंग कार्यक्रम आयोजित करता है. वाद्य संगीत, भक्ति गीत, नाटक, लोक नृत्य, बैले या शास्त्रीय नृत्य और संगीत के कई घरानों की प्रतिभाएँ यंहा आकर एक अद्भुत माहौल का निर्माण करते हैं. अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में आयोजित यह
उत्सव बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है.
नवरात्रि
नवरात्रि लगातार नौ रातों तक प्रभु राम (महाकाव्य रामायण के नायक) और देवी दुर्गा की स्तुति में मनाया जाता है. इन दिनों महान महाकाव्य 'रामायण',से मंत्रो का निरंतर जप और राम के जीवन के के विभिन्न पहलुओं का शाम में नौ दिनों तक मंचन होता है. यद्दपि नवरात्रि विभिन्न रूपों से
मनाया जाता है,
साधारणतः इसे असत्य
पर सत्य की विजय
के रूप में
मनाया जाता है।
नवरात्रि का त्यौहार सबसे जोश और
उल्लास के साथ
गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और बंगाल में मनाया जाता है.
नवरात्रि का सबसे खुशी का जश्न गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और बंगाल में देखा जाता है. गुजरात में हर रात लोग आंगनों में इकट्ठा होकर गरबा नृत्य और डांडिया रास में भाग लेते हैं. डांडिया रास एक सामुदायिक नृत्य है जिसमें पुरुष और महिलाएं उत्सव के कपड़ों सुसज्जित में कपड़े पहने जोड़ो में
दो छोटे रंगीन
डंडों को संगीत
की लय पर
आपस में बजाते
हुए घूम घूम
कर नृत्य करते
हैं।
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