प्राचीन शहर उज्जैन शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। ऐसा प्रचलित है कि उज्जैन में मंदिरों की संख्या इतनी अधिक है कि अगर कोई एक अनाज के दो गाड़ियों के साथ यहाँ आता है और प्रत्येक मंदिर में केवल एक मुट्ठी अनाज ही भेंट चढ़ाता है, फिर भी उसे ये अनाज कम पड़ेंगे।
ऐसी किंवदंती है कि उज्जैन सात सप्तपुरी में से एक है। ये सप्तपुरी भारत के वे सात पवित्र शहर हैं जंहा आकर मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र से मोक्ष या मुक्ति की है प्राप्ति होती है। हर 12 साल के बाद उज्जैन में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। कुम्भ मेले को यंहा पर सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है।श्री बडे गणेश मंदिर
महाकालेश्वर मंदिर के पास टैंक के ऊपर स्थित इस मंदिर में शिव के पुत्र गणेश की भव्य और कलापूर्ण मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस आकार और सौंदर्य की मूर्ति शायद ही कंही मिलता हो। मंदिर के बीच में पंच - मुखी हनुमान की एक प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर में संस्कृत और ज्योतिष शास्त्र सीखने का भी प्रावधान है.
चिन्तामणि गणेश
यह अत्यन्त प्राचीन मंदिर फतेहाबाद रेलवे लाइन के पास शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। मंदिर में विराजमान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है, यानि भूमि से स्वयं निकला हुआ। गणेश की पत्नियाँ रिद्धी और सिद्धी उनके दोनों तरफ प्रतिष्ठित की गयी हैं। मंदिर का सभा-मंडप के स्तंभों की शिल्पकारी परमार राजाओं द्वारा करायी गयी थी। भक्तगण इस मंदिर में बड़ी संख्या संख्या में दर्शन के लिए आते हैं क्योंकि लोक परम्परा में इसे चिन्ताहरण गणेश का स्थान माना जाता है, यानि कि वें "सांसारिक चिंताओं से मुक्ति दिलाते हैं।
पीर मत्स्येन्द्रनाथ
भर्तृहरि गुफा और और गढकालिका देवी मंदिर के बिल्कुल पास शिप्रा नदी के किनारे स्थित यह जगह बहुत ही आकर्षक है। यह शैव धर्मं के नाथ संप्रदाय के एक महान धर्मगुरु मत्स्येन्द्रनाथ को समर्पित है। मुस्लिमों और नाथ संप्रदाय के अनुयायी अपने संतों को पीर कहकर बुलाते हैं। यही कारण है कि यह प्राचीन जगह दोनों के लिए पवित्र स्थल है। इस जगह की खुदाई के समय ई.पू. 6 और 7 वीं शताब्दी के पुरावशेष प्राप्त हुए हैं।
भर्तृहरि गुफा
भर्तृहरि गुफा गढकालिका देवी मंदिर के पास शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। ऐसी किंदवंती है कि यह वही जगह है जंहा विक्रमादित्य के सौतेले भाई भर्तृहरि ने सांसारिक जीवन का त्याग करने के बाद तप किया किया करते थे। भर्तृहरि एक महान विद्वान और कवि थे जिन्होंने नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक नामक काव्यों की रचना की। इन रचनाओ में संस्कृत के छंदों का बेजोड़ प्रयोग किया गया है।
मंगलनाथ मंदिर
शहर की हलचल से दूर स्थित इस मंदिर के दर्शन हेतु एक घुमावदार सड़क की सहायता लेनी पड़ती है। सामने से शिप्रा नदी का विशाल बहाव को देख कर लोंगो के मन में शांति की एक अवर्णनीय भावना का संचार होता है। मत्स्य पुराण के अनुसार, मंगलनाथ मंगल ग्रह का जन्म स्थान है। प्राचीन समय में इस जगह से मंगल ग्रह को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। इसीलिए यह जगह खगोलीय अध्ययन के लिए उपयुक्त थी। इस मंदिर में मंगलनाथ भगवान की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है।
कालिदास अकादमी
इस अकादमी की स्थापना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा महाकवि-नाटककार कालिदास की स्मृति को अमर बनाने के लिए तथा कालिदास को शीर्ष पर रखते हुए समस्त शास्त्रीय परंपरा की प्रतिभा को प्रेक्षपित करने के लिए, संस्कृत शास्त्रीय एवं पारम्परिक प्रदर्शन कला में अनुसन्धान और अध्ययन के लिए और भिन्न सांस्कृतिक परिवेश और भाषा समूहों में समकालीन मंच के लिए अनुकूलता सुविधाजनक बनाने हेतु एक बहु-विषयी संस्थान के रूप में सृजित करने के लिए उज्जैन में की गयी थी। अकादमी परिसर में थिएटर, संग्रहालय, पुस्तकालय, व्याख्यान तथा संवाद गोष्टी कक्ष, अभ्यास हेतु लघु मंच, विद्वानों के लिए अनुसन्धान सुविधाएँ और एक विशाल मुक्ताकाश मंच मौजूद है।
राम जनादर्न मंदिर, रामघाट, हरिहरतीर्थ, मल्लिकार्जुन तीर्थ, गंगा घाट, भैरों का रोजा, बेगम का मकबरा, बिना नींव की मस्जिद तथा दिगंबर जैन संग्रहालय उज्जैन के अन्य महत्वपूर्ण स्थल हैं।
दुर्गादास की छतरी
आसपास के हरे परिदृश्य में स्थित यह विशिष्ट स्मारक एक छोटे से मणि की तरह चमकता रहता है। मारवाड़ के इतिहास में अपने त्याग , बलिदान तथा नि: स्वार्थ सेवा से वीर दुर्गादास ने ने एक विशिष्ट स्थान प्राप्त किया है। उन्होंने महाराज जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद जोधपुर के स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और औरंगजेब की इच्छा के विरुद्ध अजीत सिंह को मारवाड़ के सिंहासन पर बिठाया। दुर्गादास का देहांत सन 1718 में रामपुरा में हुआ और उनकी इच्छा के अनुसार उनकी अन्त्येष्टि शिप्रा के तट पर किया गया। जोधपुर के राजाओं ने उनकी समृति में इस छतरी का निर्माण कराया था। राजपुर शैली में बनाया गया इस खूबसूरत स्मारक के बीच में दुर्गादास की प्रतिमा है।
हरसिध्दि
उज्जैन नगर के प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में हरसिध्दि देवी का मंदिर एक प्रमुख स्थान है। महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियों के मध्य में अन्नपूर्णा की मूर्ति गहरे सिन्दूरी रंग में पुती हुई हैं। इस मन्दिर में श्रीयन्त्र भी प्रतिष्ठित हैं।
शिव पुराण के अनुसार दक्ष-प्रजापति के यज्ञ में राती को यज्ञ-कुण्ड से उठाकर जब शिव ले जारहे थे तब सती की कोहनी इस स्थान पर स्थान पर गिरी थी। मन्दिर का पुनर्निर्माण मराठाकाल में हुआ और प्रांगण में दोनों दीप-स्तम्भ विशिष्ट मराठा कृति हैं. मन्दिर के प्रांगण में एक प्राचीन बावडी है।
सिद्धवट
शिप्रा नदी के तट पर इस स्थान पर एक प्राचीन वटवृक्ष है जो कि बहुत ही विशाल है। सिद्धवट प्रयाग और गया के अक्षयवट, वृन्दावन के वंशीवट तथा नासिक के पंचवट के समान अपनी पवित्रता के लिए प्रसिध्द है। यह एक घाट पर स्थित है जिसमे हजारों तीर्थयात्री शिप्रा में स्नान करते हैं। एक मान्यता के अनुसार पार्वती ने यहाँतपस्या की थी। एक समय यह जगह नाथ सम्प्रदाय का पूजा स्थल था।
ऐसा कहा जाता है कि मुगल शासकों ने इस वटवृक्ष को काटकर लोहे का तवा जडवा दिया गया था ताकि इसके जड़ों को फुटने से रोका जा सके। फिर भी ऐसा नहीं हो पाया और तवों को फोडकर यह फिर से हरा-भरा हो गया।
सिद्धवट के निकट भैरोगढ़ सदियों से ब्लॉक प्रिंटिग के लिए प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में जब अन्य देशों के साथ भारत के व्यापारिक सम्बन्ध थे तब भैरोगढ़ के बने हुए वस्त्र रोम और चीन की बाज़ारों में बिकते थे।
काल भैरव मंदिर
शैव परंपरा में अष्ट-भैरवों की पूजा का महत्व माना गया हैं तथा काल भैरव इनमें सर्व प्रमुख हैं। शिप्रा नदी के तट पर स्थित इस मंदिर का निर्माण रजा भद्रसेन ने कराया था। स्कन्द पुराण के अवन्ति-खण्ड में काल भैरव के मन्दिर का उल्लेख मिलता हैं। कापालिक तथा अघोर मत के अनुयायी शिव अथवा भैरव की आराधना करते थे। इन पंथों की साधना का सम्बन्ध उज्जयिनी से रहा हैं। आज भी काल भैरव की पूजा में लोग सुरा अर्पित करते हैं। इस मन्दिर में मालवा-शैली के सुन्दर चित्र अंकित किए गए थे जिनके अब केवल निशान पाए जाते हैं।
सान्दीपनि आश्रम
प्राचीन काल से ही उज्जैन अपने राजनीतिक और धार्मिक महत्व के अलावा शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है। यह तथ्य इस बात से स्पस्ट हो जाती है कि महाभारत काल में भगवान कृष्ण और सुदामा गुरु महर्षि सांदीपनि जी से शिक्षा ग्रहण करने इस आश्रम में आते थे।
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आश्रम के निकट का क्षेत्र अंकपात कहलाता है। जनश्रुति के आधार पर कृष्ण अपने अंक लेखन की पट्टिका याँह साफ करते थे। प्राचीन काल में आश्रम का जलस्त्रोत गोमती कुण्ड था जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता हैं। कुण्ड के पास खडे नन्दी की प्रतिमा दर्शनीय है जो शुंगकालीन है।
गोपाल मंदिर
यह विशाल मंदिर उज्जैन शहर के मध्य व्यस्ततम क्षेत्र में स्थित है। मंदिर का निर्माण महाराजा दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजा बाई ने 19 वीं सदी में कराया था। यह मन्दिर मराठा स्थापत्य कला का सुन्दर उदाहरण है। इस मन्दिर के गर्भगृह में सुसज्जित चाँदी का द्वार विशेष दर्शनीय है। कहा जाता है. कि यह द्वार सोमनाथ के प्रसिध्द मन्दिर से गजनी ले जाया गया था. वहाँ से मुहम्मदशाह अब्दाली इसे लाहौर लाया था। महादजी सिन्धिया ने उसे प्राप्त किया और इस मन्दिर में उसी द्वार की पुन:प्रतिष्ठा की गई है।
नवग्रह मंदिर (त्रिवेणी)
शिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर नवग्रह का यह मंदिर पुराने उज्जैन शहर से दूर स्थित है। नौ ग्रहों को समर्पित इस मंदिर में शनिचरी अमावस्या पर बडी संख्या में लोग एकत्र होते है। इस स्थान का धार्मिक महत्व वर्तमान युग में बढता गया है, यद्दपि प्राचीन शास्त्रों और ग्रंथों में इस स्थान का विषेश उल्लेख प्राप्त नहीं होता है।
महाकालेश्वर:
महाकाल शिव अपनी पूरी महिमा के साथ उज्जैन में विराजमान हैं। गगन को छूती हुई शिखरों के साथ महाकालेश्वर मंदिर श्रद्धालुओं के मन में विस्मय और श्रद्धा की भावना उत्तपन्न करता है। आधुनिक जीवन की व्यस्त दिनचर्या के बीच भी उज्जैन नगर के लोक-मानस में महाकाल की परम्परा अनादि हैं और पुराणी पूरानी परंपराओं के साथ एक अटूट कड़ी के रूप में काम करता है।
वेधशाला
उज्जैन का खगोल विज्ञान के क्षेत्र में काफी महत्व रहा है। खगोल विज्ञान की प्रसिद्ध रचनाएँ सूर्य सिद्धांत और पांच सिद्धांत उज्जैन में ही लिखी गयी थी। भारतीय खगोलविदों के अनुसार, कर्क रेखा उज्जैन से होकर ही गुजराती है। हिंदू भूगोल शास्त्रियों के अनुसार यह रेखा देशांतर की मध्याह्न रेखा भी है। ईसा पूर्व 4 वीं शताब्दी से उज्जैन को भारत का ग्रीनविच होने का गर्व प्राप्त है।
इस वेधशाला का निर्माण महान विद्वान सवाई राजा जयसिंह (1686-1743) ने करवाया था। राजा जयसिंह ने टॉलमी और यूक्लिड की रचनाओं का अनुवाद अरबी से संस्कृत भाषा में किया था। उनके द्वारा पांच शहरों दिल्ली, जयपुर, मथुरा, वाराणसी एवं उज्जैन में बनवाई गई वेधशालाओं में से उज्जैन की वेधशाला अभी भी कार्यरत है। शिक्षा विभाग के अन्तर्गत इस वेधशाला में ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन आज भी किया जाता हैं तथा प्रतिवर्ष ''एफेमेरीज'' अर्थात् ग्रह की दैनिक गति एवम् स्थिति दर्शक पत्रिका प्रकाशित की जाती हैं। वहाँ एक छोटा सा तारामंडल और चाँद, मंगल, बृहस्पति और उनके उपग्रहों के निरीक्षण के लिए एक दूरबीन है। इस वेधशाला का उपयोग मौसम के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है.
विक्रम कीर्ति मंदिर:
विक्रम संवत के दूसरे सहस्राब्दी के अवसर प्रतिस्थापित विक्रमादित्य की स्मृति को संजोय रखने हेतु इस सांस्कृतिक केन्द्र के भीतर सिंधिया ओरिएंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट,एक पुरातत्व संग्रहालय, एक कला दीर्घा तथा प्रेक्षागृह मौजूद है। सिंधिया ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में विभिन्न विषयों पर 18,000 अमूल्य पांडुलिपियों का संग्रह है तथा यंहा महत्वपूर्ण प्राच्य प्रकाशनों का एक संदर्भ पुस्तकालय भी है। प्राकृत, अरबी, फारसी और अन्य भारतीय भाषाओं में दुर्लभ पांडुलिपियों में वैदिक साहित्य तथा दर्शन से नृत्य और संगीत तक व्यापक विषय श्रृंखला सम्मिलित है।
इस संस्थान में खजूर पत्र तथा भोज पत्र पांडुलिपियाँ भी संरक्षित हैं। श्रीमद भागवत की एक सचित्र पांडुलिपि, जिसमें चित्रों में वास्तविक स्वर्ण और रजत का प्रयोग किया गया है, के अलावा यंहा राजपूत और मुगल शैली में पुरानी पेंटिंग्स का समृद्ध संग्रह है। नर्मदा घाटी से खुदाई में प्राप्त मूर्तियाँ, ताम्रपत्र तथा जीवाश्म यंहा रखे गए हैं। प्राचीन काल के हाथी का विशाल मस्तक विशेष रुचिकर है।
विक्रम विश्वविद्यालय
विक्रम विश्वविद्यालय अतीत को जानने के लिए एक प्रसिद्ध केंद्र है। 1957 में विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। देवास रोड पर स्थित यह विश्वविद्यालय उज्जैन के साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता ह।
आस पास के आकर्षण
भानपुरा
मंदसौर जिले में स्थित भानपुरा का नाम राजा भामन के नाम पर पड़ा। भानपुरा मंदसौर शहर से 127 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां बने एक संग्रहालय में मंदसौर के कला की अनेक दुर्लभ वस्तुओं को देखा जा सकता है। गुप्त काल से लेकर प्रतिहार और परमार वंश तक के विभिन्न कला कृतियों के अलावा, उमा-महेश्वर, कार्तिकेय, विष्णु और नंदी की आकर्षक तस्वीरों को भी यहां देखा जा सकता है।
देवास :
देवास इंदौर से 36 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 3 पर स्थित है। देवास की पहाड़ी पर देवी चामुंडा का मंदिर प्रसिद्ध है। .
अगार
उज्जैन से 66 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अगार पुरातात्विक महत्व एक प्राचीन स्थल है।
नागदा:
उज्जैन से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नागदा एक औद्योगिक शहर है। यंहा आप प्राचीन मंदिरों को देख सकते हैं।
सैलाना
शायद एशिया में सबसे बड़ा संग्रह, सैलाना, रतलाम से 21 किलोमीटर दूर कैक्टस के 1200 से अधिक प्रजातियों (केवल 50 भारतीय हैं) के साथ अपने कैक्टस गार्डन के लिए प्रसिद्ध है। यह अपने व्यंजन परंपरा के भी लिए प्रसिद्ध है।
मक्सी
उज्जैन से 39 किलोमीटर की दुरी पर स्थित मक्सी जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।
गांधी सागर
मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर स्थित चंबल नदी पर बना गाँधी सागर बांध नीमच से 91 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यंहा का दृश्य बहुत ही मनलुभावन है।
इंदौर
मध्य प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी कहलाती है।
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