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Showing posts from February, 2023

त्रिपुरा

 त्रिपुरा पूर्व में हिल टिप्पेरा के नाम से प्रसिद्ध त्रिपुरा भारत के उत्तर - पूर्वी क्षेत्र के दक्षिण पश्चिम कोने में स्थित है. त्रिपुरा के नाम की उत्पत्ति पर अभी भी इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के बीच एकमत नहीं है। प्रसिद्ध इतिवृत्त राजमाला के अनुसार प्राचीन काल में  त्रिपुर नामक एक राजा  का त्रिपुरा के  भू खंड  में राज्य था।  कुछ   इतिहासकार और शोधकर्ता त्रिपुरा शब्द की उत्पत्ति इस राज्य के भौगोलिक स्थिति से जोड़ते हैं। त्रिपुरा का शाब्दिक अर्थ होता है पानी के निकट। ऐसा माना जाता है कि प्रचीन काल में यह समुद्र के इतने निकट तक फैला था कि इसे इस नाम से बुलाया जाने लगा । आज़ादी के बाद भारतीय गणराज्य में विलय के पूर्व त्रिपुरा एक राजशाही थी । इसका इतिहास 2,500 साल पुराना है और यंहा लगभग 186 राजाओं ने शासन किया। त्रिपुरा विलय समझौते के अंतर्गत त्रिपुरा को भारत में  सन् 1949 के 15 अक्टूबर को शामिल किया गया. अगरतला त्रिपुरा की राजधानी अगरतला तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा है और चौथे तरफ में यह बांग्लादेश के मैदानी भागों से सटा है। अगरतला  भारत के उन शहरों में शामिल  है जन्हा की आबादी बिभिन्न जाति

त्योहार

मैसूर दशहरा विश्व प्रसिद्ध मैसूर दशहरा की उत्पत्ति 15 सदी में विजयनगर साम्राज्य के समय हुई थी. विजयनगर के पतन के बाद मैसूर के राजा वाडियार ने 1610 में इस रंगीन और धार्मिक उत्सव को मानाने की प्रथा की शुरुआत की और बाद में वाडियार राजाओं के  तत्वावधान में  यह त्यौहार पूरे धूमधाम से मनाया जाने लगा. दस दिनों तक चलने वाला  मैसूर दशहरा विजयदशमी के दिन समाप्त होता है. मैसूर दशहरा को नाद  हब्बा' या राज्य के त्योहार के रूप में घोषित किया गया है किंवदंती है कि मैसूर का  राक्षस ' महिषासुर' का वध वादियारों की कुल देवी  चा मुंडेश्वरी के द्वारा किया गया था.  इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इसे विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। दशहरा के समय रौशनी से सुजज्जित मैसूर महल और पूरे शहर का दृश्य देखने लायक ही बनता है. सितम्बर १८०५ में   वाडियार राजाओं ने मुग़ल शाशकों के तर्ज पर शाही परिवार के सदस्यों, यूरोपीय, महल के अधिकारियों, शाही याजकों और प्रभुध नागरिकों के लिए एक विशेष दरबार लगाने की शुरुआत की .  धीरे धीरे यह त्यो

उज्जैन

प्राचीन शहर उज्जैन   शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। ऐसा प्रचलित है कि   उज्जैन में मंदिरों की संख्या इतनी अधिक   है   कि   अगर कोई   एक अनाज के दो गाड़ियों के साथ यहाँ आता है और प्रत्येक मंदिर में केवल एक मुट्ठी अनाज ही भेंट   चढ़ाता है , फिर भी उसे ये अनाज कम पड़ेंगे ।   ऐसी किंवदंती   है   कि उज्जैन सात सप्तपुरी में से एक है। ये सप्तपुरी भारत के   वे   सात पवित्र   शहर हैं जंहा आकर   मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र से   मोक्ष या मुक्ति की है प्राप्ति होती है। हर 12 साल के बाद उज्जैन   में   कुंभ मेला    आयोजित किया जाता है। कुम्भ मेले को   यंहा पर सिंहस्थ   के नाम से जाना जाता है।   श्री बडे गणेश मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास टैंक के ऊपर स्थित इस मंदिर में शिव के पुत्र गणेश की भव्य और कलापूर्ण मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस आकार और सौंदर्य की मूर्ति शायद ही कंही मिलता हो। मंदिर के बीच में पंच - मुखी हनुमान की एक प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर में संस्कृत और ज्योतिष शास्त्र सीखने का भी प्रावधान है.