Saturday, March 4, 2023

गोनासिका मंदिर केन्दुझर

Gonasika_Guptaganga_Temple/ Image Credit


घाटियों व जंगली पहाड़ियों से घिरा गोनासिका ब्रहमेश्वर महादेव मंदिर के लिए जाना जाता है। यह वैतरणी नदी के उद्गम पर स्थित है। वैतरणी नदी अपने उद्गम स्थल से थोड़ा दूर जा कर भूमिगत हो जाती है और गुप्तगंगा के नाम से जानी जाती है। इसके बाद थोड़ी दूरी पर यह एक पत्थर से बाहर निकलती दिखती है, जो दिखने में गाय के नथुने जैसा लगता है।

गोनासिका ओडिशा राज्य के केन्दुझर या केउंझर जिला मुख्यालय से 45 Km दूर है. 

गोनासिका मंदिर 



  

कार्बेट नेशनल पार्क

 

    A River in Corbett National Park / Image Credit : commons.wikimedia.org

                                                                    

भारत के प्रसिद्ध और पुराने  वन्यजीव अभयारण्यों में से एक कार्बेट नेशनल पार्क समुद्रतल से 600 से 1100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । 

An elephant herd at Jim Corbett National Park / Image credit


Thursday, March 2, 2023

Yamunotri Ropeway Project

The state government of Uttarakhand has inked a contract with two private firms to construct a ropeway to Yamunotri from Janki Chatti in Kharsali, situated at a height of over 10,000 ft in the Garhwal Himalayas. The trek from Janki Chatti to Yamunotri is 07 km.

The project will be executed by Uttarakhand Tourism Development Board. The ropeway is being built under public-private partnership (PPP) mode.

The length of the ropeway will be 3.38 km (aerial distance) and will be developed at a cost of Rs 166.82 crore.

The ropeway will cut down the travel time to just 20 minutes from the current 2 to 3 hours.

The two private companies are SRM Engineering Solutions Pvt. Ltd. and FIL Industries Pvt. Ltd. 

The 3.38 km long ropeway will be of mono-cable detachable type.

The construction of the ropeway is based on Mono-Cable Detachable Gondola system technology.

Yamunotri Dham

Greatly revered as the origin of the Yamuna, Yamunotri  is a Hindu sacred site of the first order. Its central temple, the shrine of Yamunotri, is an obligatory stop on the four Chota Char Dham pilgrimage circuit. 

Yamunotri Dham is part of Chota Char Dham– the four famous Hindu pilgrimages in the Himalayas. The other famous Hindu pilgrimages in the Himalayas are Gangotri, Kedarnath and Badrinath.

Yamunotri is the source of the river Yamuna, a sacred river for the Hindus. It is located in the Garhwal region. Located at an altitude of 3,291 metres Yamunotri is in the Uttarkashi district of Uttarakhand. The temple is accessible through a 14 km trek from Hanuman Chatti. The trek from Janki Chatti to Yamunotri is 07 km.   Janki Chatti is also known for thermal springs.

Hanuman Chatti 

Hanuman Chatti is located at the confluence of the Hanuman Ganga and Yamuna rivers and the trekking route to Dodi Tal starts here. 

Janki Chatti

Famous for its thermal springs,  Janki Chatti is located 7km before Yamunotri. 


Key Takeaways

  • A popular pilgrim place in India, Yamunotri temple was built in 1839 by Sundarshan Shah who was the ruler of Tehri. The Yamunotri Temple is situated at an elevation of about 3,235 meters amidst stunning natural beauty. Yamunotri is a place of immense spiritual significance for the Hindus. 
  • Yamunotri is the head of the goddess Yamuna.
  • A popular pilgrim place in India, Yamunotri temple was built in 1839 by Sundarshan Shah, ruler of Tehri.  The temple emits a sacred and spiritual energy.
  • Devotees either walk or use palanquins or ponies to reach the temple from Kharsali in Janki Chatti. 


Wednesday, March 1, 2023

जोग जलप्रपात

प्रकृति को उसके अनूठे रूप में देखना हो तो जोग जलप्रपात जाएं,। यहां शरावती नदी 956 फीट की ऊंचाई से गिरते हुए -ंउचयराजा, रानी, रोरर और रॉकेट नाम से चार खूबसूरत जलप्रपात बनाती है। भारत के दर्शनीय चमत्कारों में से एक जोग जलप्रपात मानसून में तो और भी मनोरम दृश्य उपस्थित करता है ।


Tuesday, February 28, 2023

त्रिपुरा

 त्रिपुरा पूर्व में हिल टिप्पेरा के नाम से प्रसिद्ध त्रिपुरा भारत के उत्तर - पूर्वी क्षेत्र के दक्षिण पश्चिम कोने में स्थित है. त्रिपुरा के नाम की उत्पत्ति पर अभी भी इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के बीच एकमत नहीं है। प्रसिद्ध इतिवृत्त राजमाला के अनुसार प्राचीन काल में  त्रिपुर नामक एक राजा  का त्रिपुरा के  भू खंड  में राज्य था।  कुछ   इतिहासकार और शोधकर्ता त्रिपुरा शब्द की उत्पत्ति इस राज्य के भौगोलिक स्थिति से जोड़ते हैं। त्रिपुरा का शाब्दिक अर्थ होता है पानी के निकट। ऐसा माना जाता है कि प्रचीन काल में यह समुद्र के इतने निकट तक फैला था कि इसे इस नाम से बुलाया जाने लगा । आज़ादी के बाद भारतीय गणराज्य में विलय के पूर्व त्रिपुरा एक राजशाही थी । इसका इतिहास 2,500 साल पुराना है और यंहा लगभग 186 राजाओं ने शासन किया। त्रिपुरा विलय समझौते के अंतर्गत त्रिपुरा को भारत में  सन् 1949 के 15 अक्टूबर को शामिल किया गया.

अगरतला

त्रिपुरा की राजधानी अगरतला तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा है और चौथे तरफ में यह बांग्लादेश के मैदानी भागों से सटा है। अगरतला  भारत के उन शहरों में शामिल  है जन्हा की आबादी बिभिन्न जाति और जनजातियों के समूह से बनी है। हरियाली से परिपूर्ण वनों से आच्छादित, शानदार पर्यटन स्थलों की प्रचुरता और धीमी गति से चलने वाला यंहा का जन- जीवन अगरतला को सही मायनो में एक आदर्श पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित करता है। ऊंचे पहाड़ों पर विकसित समृद्ध और विविध जनजातीय संस्कृति और आकर्षक हरी घाटियाँ त्रिपुरा के आकर्षण को और  बढ़ाते हैं।

अगरतला में महाराजा बीर बिक्रम कॉलेज पारंपरिक वास्तुकला का एक शानदार नमूना है।

राजधानी के बीचोबीच स्थित सुकांत अकादमी एक विज्ञान संग्रहालय के रूप में प्रसिद्ध है।

 दो मंजिला उज्जयंता पैलेस का फर्श खूबसूरत टाइलों से निर्मित है। अगरतला के इस मुख्य स्मारक में संदुर

सुंदर बगीचे हैं ।

मलांचावास बंगले में रवीन्द्रनाथ टैगोर 1919 में त्रिपुरा की अपनी यात्रा के दौरान ठहरें थे ।

एयरपोर्ट रोड पर वेणुबन विहार नामक एक बौद्ध मंदिर है जंहा भगवान बुद्ध और बोधिसत्वों की धातुओं से बनी

सुंदर प्रतिमाएं हैं।

ओल्ड अगरतला में चतुर्दश देवता मंदिर है जो चौदह देवी देवताओं के सिर की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।

काली मंदिर (30 किलोमीटर)

कमलसागर झील के समीप की पहाड़ियों में स्थित देवी काली का एक प्रसिद्ध मंदिर है । इस विशाल झील का निर्माण महाराजा धन्य माणिक्य ने 15वीं शताब्दी में करवाया था। बांग्लादेश की सीमा पर स्थित थिस्वस्त झील अपने नैसर्गिक सौंदर्य के लिए त्रिपुरा का एक उत्कृष्ट पिकनिक  के रूप में उभरा है।

उदयपुर पूर्व में त्रिपुरा के राजाओं के सत्ता का केंद्र था।

जगन्नाथ मंदिर

जगन्नाथ मंदिर त्रिपुरा में मंदिर वास्तुकला का एक दुर्लभ नमूना है।

भुवनेश्वरी मंदिर

भुवनेश्वरी मंदिर अगरतला से 55 किमी दूर उदयपुर में गोमती नदी के पास स्थित है.

त्रिपुरा सुंदरी मंदिर

माताबारी के नाम से प्रसिद्ध त्रिपुरा सुंदरी मंदिर त्रिपुरा राज्य के प्रमुख पयर्टन स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के 51 महापीठों में से एक है। दीवाली के अवसर पर हर साल इस प्रसिद्ध मंदिर के निकट एक मेले का आयोजन होता है जिसमे दो लाख से अधिक तीर्थयात्री भाग लेते हैं।

नीरमहल

रूद्रसागर झील के मध्य स्थित नीरमहल उत्तर - पूर्वी क्षेत्र में एकमात्र झील महल है। शीत काल में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षियों का जमावड़ा लगता है। हर साल जुलाई / अगस्त में एक नौका दौड़ आयोजित किया जाता है.

डंबुर झील

41 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली डंबुर झील अगरतला से 120 किलोमीटर दूर स्थित है। राइमा और सरमा नदियों के

संगम पर बसे इस झील के आस - पास हरियाली से परिपूर्ण वन क्षेत्र है। शरद ऋतू में यंहा प्रवासी पक्षियों की विभिन्न

प्रजातियों को देखा जा सकता है। इस  झील में प्रचुर संख्या में मछलियाँ भी पायी जाती हैं।


उनोकेटि

उनोकेटि का शाब्दिक अर्थ होता है - एक करोड़ से एक कम। ऐसा कहा जाता है की इतनी ही संख्या में यहाँ चट्टानों को

काटकर नकाशियाँ पाई जाती है।  उनोकेटि अगरतला से 180 किमी की दुरी पर इस्थित है और एक महत्वपूर्ण

पुरातात्विक महत्व का स्थान है। हर साल उनोकेटि में एक बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।  अशोकाष्टमी मेला

के नाम से प्रसिद्ध यह मेला अप्रैल के महीने में लगता  है जिसमे हजारों की संख्या में तीर्थयात्री भाग लेते हैं।


पिलक

अगरतला से 100 किमी की दूरी में स्थित पिलक 8 वीं और 9 वीं सदी के हिंदू और बौद्ध मूर्तिकला का खजाना है. 10

वर्ग किमी के क्षेत्र में अनेक ख़ूबसूरत मूर्तियाँ पाई गयी हैं।

सेपहिजाला

अगरतला से 25 किमी की दूरी पर स्थित  सेपहिजाला का संरक्षित क्षेत्र 18.53 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैला है। यंहा

की आवासीय और प्रवासी पक्षियों की 150 प्रजातियां, आर्किड गार्डन,  नौका विहार की सुविधाएँ, वन्य जीवन,

वनस्पति उद्यान, चिड़ियाघर, हाथी की सवारी, रबर और कॉफी बागान पर्यटको को आकर्षित करती है.


तृष्णा वन्य जीवन अभयारण्य


अगरतला से लगभग 100 किमी की दूरी पर स्थित तृष्णा वन्य जीवन अभयारण्य जंगली भैंसों के लिए प्रसिद्ध है।

जम्पुई पर्वत (अगरतला से 220 किमी)

समुद्र तल से 3,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित, जम्पुई हिल्स अपने अद़भुत परिदृश्य और जलवायु के लिए

प्रसिद्ध है. हरे भरे जंगल, खुबसूरत नारंगी के बगीचे ,सूर्योदय और सूर्यास्‍त के अद्भुत नज़ारे पर्यटकों को

पूर्ण रूप से लुभाता है। जम्पुई की पहाड़ियों में 11  गांवों का एक समूह है जन्हा मिजो (लुशाई जनजातियों)

और रियांग जनजातियों का निवास है। वन्ग्मुम गांव में ईडन टूरिस्ट लॉज में पर्यटक ठहर सकते हैं. इसके

अलावा स्थानीय लोगों के द्वारा   भी आवासीय सुविधा प्रदान की जाती हैं। बेतालोंगच्चिप त्रिपुरा की सबसे

ऊंची चोटी इस पहाड़ी श्रृंखला का अंग है जो 3600 फीट ऊंची है। यंहा से मिजोरम, चित्तगोंग और त्रिपुरा के

अन्य खूबसूरत घाटियों का नजारा देखा जा सकता है। पर्यटकों के लिए इस पहाड़ी श्रृंखला में कई

अच्छे ट्रैकिंग मार्ग हैं।



त्योहार

मैसूर दशहरा

विश्व प्रसिद्ध मैसूर दशहरा की उत्पत्ति 15 सदी में विजयनगर साम्राज्य के समय हुई थी. विजयनगर के पतन के बाद मैसूर के राजा वाडियार ने 1610 में इस रंगीन और धार्मिक उत्सव को मानाने की प्रथा की शुरुआत की और बाद में वाडियार राजाओं के तत्वावधान में यह त्यौहार पूरे धूमधाम से मनाया जाने लगा.

दस दिनों तक चलने वाला मैसूर दशहरा विजयदशमी के दिन समाप्त होता है. मैसूर दशहरा को नाद हब्बा' या राज्य के त्योहार के रूप में घोषित किया गया है

किंवदंती है कि मैसूर का राक्षस 'महिषासुर' का वध वादियारों की कुल देवी  चामुंडेश्वरी के द्वारा किया गया था. इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इसे विजयादशमी के नाम से जाना जाता है।

दशहरा के समय रौशनी से सुजज्जित मैसूर महल और पूरे शहर का दृश्य देखने लायक ही बनता है. सितम्बर १८०५ में  वाडियार राजाओं ने मुग़ल शाशकों के तर्ज पर शाही परिवार के सदस्यों, यूरोपीय, महल के अधिकारियों, शाही याजकों और प्रभुध नागरिकों के लिए एक विशेष दरबार लगाने की शुरुआत की.  धीरे धीरे यह त्योहार शाही परिवार के एक परंपरा के रूप में स्थापित हो गया और नलवाड़ी कृष्णराज वाडियार (1902-1940) के शासन के दौरान अपने चरम पर पहुंच गया

कोणार्क नृत्य महोत्सव, उड़ीसा

कोणार्क का सूर्य मंदिर एक विश्व विरासत स्थल के रूप में प्रसिद्ध है. ओडिशा राज्य में स्थित कोणार्क में प्रतिवर्ष दिसम्बर के महीने में शास्त्रीय नृत्य और संगीत का एक भब्य उत्सव का आयोजन किया जाता है. देश भर से आये नर्तकी यंहा खुले सभागार में अपनी कला का पर्दर्शन करते हैं. इस दौरान ओडिसी, भरत नाट्यम, मणिपुरी, कथक और चोऊ नृत्यों का आयोजन होता है जो एक बिहंगम दृश्य प्रस्तुत करता है और अत्यधिक कर्णप्रिय हैं. साथ-साथ कोणार्क उत्सव के त्योहार के दौरान एक शिल्प मेला भी आयोजित किया जाता है. इस मेले में अनेक प्रकार के हस्तशिल्प और व्यंजनों का आनंद प्राप्त किया जा सकता है. यह उत्सव उड़ीसा पर्यटन और ओडिसी रिसर्च सेंटर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है.

गुरु पर्व
सिखों के संस्थापक गुरु नानक देव की जयंती सिखों द्वारा बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. ननकाना साहिब (लाहौर में गुरु नानक का जन्म स्थल) में एक भव्य मेले और उत्सव का आयोजन किया जाता है जिसमे भारत और विदेशों से हजारों की संख्या में सिख एकत्रित होते हैं. इस दिन पूरे देश के गुरुद्वारों में सिखों के पवित्र धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब का अखण्ड पाठ होता है और दीपक जलाये जाते हैं. जुलूस निकालने के साथ लंगर भी लगाये जाते है जंहा मुफ्त भोजन और प्रसाद वितरित किये जाते हैं.

सोनपुर मेला, बिहार

यह विश्व प्रसिद्ध पशु मेला गंगा और गंडक की पवित्र नदियों के संगम पर स्थित सोनपुर के एक विशाल मैदान में आयोजित किया जाता है, इस मेले के जीवंत बाजार में अनेक किस्मो के पशु और वस्तुओं की बिक्री होती है. सोनपुर मेले में हाथियों की बड़ी संख्या में बिक्री होती है. इस समय विभिन्न प्रकार के लोक नाटक,  खेल और बाजीगर मेले में देखे जा सकते हैं.

पुष्कर मेला  पुष्कर, राजस्थान

अजमेर से ११ किलोमीटर के दूरी में स्थित पुष्कर में इस मेले का आयोजन प्रतिवर्ष होता है इस सांस्कृतिक, व्यापारिक और धार्मिक मेले में  राजस्थानी पुरुष और महिलाएं अपने रंगीन पारंपरिक पोशाक में यंहा आते हैं. इस समय यंहा पर भगवा वस्त्र धारण किये हुए राखों से  लिप्त साधुओं का जमावड़ा लगता है. इसी समाया यहां पर पशु मेला भी आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में सजे हुए बैल, गाय, भेड़, बकरी, घोड़े और ऊंट देखे जा सकते हैं. यह शायद दुनिया में सबसे बड़ा पशु मेला है जो भारत और पुरे विश्व से प्राय 1,00,000 से अधिक लोगों को अपनी और आकर्षित करता है. धार्मिक अनुष्ठानों और व्यापार के अलावा, यंहा पर लोग भरी संख्या में   सांस्कृतिक और खेल के कार्यक्रमों  में भाग लेते हैं.

 

मुहर्रम
यह त्योहार पैगंबर मोहम्मद के पौत्र हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाया  जाता है.   यह त्यौहार बड़े उत्साह के साथ मुसलमानों विशेष रूप से शिया समुदाय के द्वारा मनाया जाता है. खुबसूरत ताजिया, शहीद कब्र की बेहतरीन प्रतिकृतियां  जुलूस सड़कों पर निकला जाता है. लखनऊ और हैदराबाद के ताजिया अपने भब्यतय के लिए प्रसिद्ध हैं.  लखनऊ, दिल्ली, आगरा और जयपुर जैसे स्थानों में भव्य पैमाने में जुलूस आयोजित किये जाते हैं. लोग अपने सिने को पिटते हुए मातम मानते है और  या हुसैन बोलते हैं.

लखनऊ महोत्सव, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
25 नवंबर और 5 दिसंबर के बीच मनाया जाने वाला यह उत्सव प्राचीन शहर अवध की वैभव को प्रितिबिम्ब करता है. रंगारंग जुलूस, पारंपरिक नाटक, प्रसिद्ध लखनऊ घराने की शैली में कथक नृत्य, गजल के साथ सारंगी और सितार वादन, क़व्वाली और ठुमरी एक त्यौहार का वातावरण निर्माण करता है.एक्का दौड़, पतंगबाजी, मुर्गों की लड़ाई और अन्य पारंपरिक खेल बीते नवाबी दिनों  में ले जाता है. इस समय एक शिल्प मेले का भी आयोजन होता है जन्हा आप खुशबुदार ब्याजनों का आन्नद ले सकते हैं.


का पोम्ब्लांग नॉन्गक्रेम, शिलांग, मेघालय
का पोम्ब्लांग नॉन्गक्रेम खासियों का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है. इस पांच दिवसीय त्योहार हर साल नवंबर में शिलांग के निकट ख्य्रेम श्र्यिएम्शिप की राजधानी स्मिट में का बली सिन्षर देवी को  अच्छी फसल और समृद्धि के लिए धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है. इस त्योहार के समय  शिलांग चोटी के देवता को बकरे की बलि दी जाती है. खासी पुरुष और महिलाये पारंपरिक वस्त्र में सजकर यंहा का प्रसिद्ध नॉन्गक्रेम नृत्य करते हैं.



हम्पी महोत्सव, कर्नाटक

नवंबर के पहले सप्ताह में आयोजित  इस तीन दिन तक चलने वाले नृत्य और संगीत के उत्सव के समय हम्पी जिवंत हो उठता है. वर्तमान में खंडहरों में परिवर्तित हम्पी कभी शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था.  कर्नाटक सरकार द्वारा आयोजित हम्पी उत्सव  नृत्य, नाटक, संगीत, आतिशबाजी, कठपुतली शो और शानदार जुलूसों का समिश्रण है जो बीते युग की भव्यता को दर्शाता है. सुसज्जित हाथियों और घोड़ों की कतार और सैन्य वेशभूषा में तैयार पुरुषों का दृश्य दर्शनीय होता है. लाल, पीले, नीले और सफेद कपड़े में  लिपटे हुआ गोपुर हम्पी के गलियों में स्थापित किये जाते है.


राजगीर नृत्य महोत्सव, बिहार

बिहार में स्थित राजगीर मगध साम्राज्य की प्राचीन राजधानी थी और दोनों बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र स्थल है. बिहार का पर्यटन विभाग  हर वर्ष राजगीर में नृत्य और संगीत का एक रंगारंग कार्यक्रम आयोजित करता है. वाद्य संगीत, भक्ति गीत, नाटक, लोक नृत्य, बैले या शास्त्रीय नृत्य और संगीत के कई घरानों की प्रतिभाएँ यंहा आकर एक अद्भुत माहौल का निर्माण करते हैं. अक्टूबर के अंतिम सप्ताह में आयोजित  यह उत्सव बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है. 

नवरात्रि 

 नवरात्रि लगातार नौ रातों तक प्रभु राम (महाकाव्य रामायण के नायक) और देवी दुर्गा की स्तुति में मनाया जाता है. इन दिनों महान महाकाव्य 'रामायण',से मंत्रो का निरंतर जप और राम के जीवन  के  के विभिन्न पहलुओं का शाम में नौ दिनों तक मंचन होता है. यद्दपि नवरात्रि विभिन्न रूपों से मनाया जाता है, साधारणतः इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। नवरात्रि का त्यौहार सबसे जोश और उल्लास के साथ गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और बंगाल में मनाया जाता है.

नवरात्रि का सबसे खुशी का जश्न गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और बंगाल में देखा जाता है. गुजरात में हर रात लोग आंगनों में इकट्ठा होकर गरबा नृत्य और डांडिया रास में भाग लेते हैं. डांडिया रास एक सामुदायिक नृत्य है जिसमें पुरुष और महिलाएं उत्सव के कपड़ों सुसज्जित में कपड़े पहने जोड़ो में दो छोटे रंगीन डंडों को संगीत की लय पर आपस में बजाते हुए घूम घूम कर नृत्य करते हैं।


उज्जैन

प्राचीन शहर उज्जैन  शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। ऐसा प्रचलित है कि उज्जैन में मंदिरों की संख्या इतनी अधिक है  कि अगर कोई  एक अनाज के दो गाड़ियों के साथ यहाँ आता है और प्रत्येक मंदिर में केवल एक मुट्ठी अनाज ही भेंट चढ़ाता है, फिर भी उसे ये अनाज कम पड़ेंगे  

ऐसी किंवदंती है कि उज्जैन सात सप्तपुरी में से एक है। ये सप्तपुरी भारत के वे सात पवित्र  शहर हैं जंहा आकर मनुष्य को जन्म और मृत्यु के चक्र से मोक्ष या मुक्ति की है प्राप्ति होती है। हर 12 साल के बाद उज्जैन में कुंभ मेला  आयोजित किया जाता है। कुम्भ मेले को यंहा पर सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है। 

श्री बडे गणेश मंदिर
महाकालेश्वर मंदिर के पास टैंक के ऊपर स्थित इस मंदिर में शिव के पुत्र गणेश की भव्य और कलापूर्ण मूर्ति प्रतिष्ठित है। इस आकार और सौंदर्य की मूर्ति शायद ही कंही मिलता हो। मंदिर के बीच में पंच - मुखी हनुमान की एक प्रतिमा विराजमान है। इस मंदिर में संस्कृत और ज्योतिष शास्त्र सीखने का भी प्रावधान है. 

चिन्तामणि गणेश
यह अत्यन्त प्राचीन मंदिर फतेहाबाद रेलवे लाइन के पास शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। मंदिर में विराजमान गणेश की प्रतिमा  स्वयंभू है, यानि भूमि से स्वयं निकला हुआ। गणेश की पत्नियाँ रिद्धी और सिद्धी  उनके दोनों तरफ प्रतिष्ठित की गयी हैं। मंदिर का सभा-मंडप के स्तंभों की शिल्पकारी परमार राजाओं द्वारा  करायी गयी थी। भक्तगण इस मंदिर में  बड़ी संख्या संख्या में दर्शन के लिए आते हैं  क्योंकि लोक परम्परा में इसे चिन्ताहरण गणेश का स्थान माना जाता है, यानि कि वें "सांसारिक चिंताओं से मुक्ति दिलाते हैं।

पीर मत्स्येन्द्रनाथ  
भर्तृहरि गुफा  और और गढकालिका देवी मंदिर के बिल्कुल पास शिप्रा नदी के किनारे स्थित यह जगह  बहुत ही आकर्षक है। यह शैव धर्मं के नाथ संप्रदाय के एक महान धर्मगुरु मत्स्येन्द्रनाथ को समर्पित है। मुस्लिमों और नाथ संप्रदाय के अनुयायी अपने संतों को पीर कहकर बुलाते हैं। यही कारण है कि यह प्राचीन जगह दोनों के लिए पवित्र स्थल है। इस जगह की खुदाई के समय ई.पू. 6 और 7 वीं शताब्दी के पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। 

भर्तृहरि गुफा
भर्तृहरि गुफा गढकालिका देवी मंदिर के पास शिप्रा नदी के किनारे स्थित है। ऐसी किंदवंती है कि यह वही जगह है जंहा  विक्रमादित्य के सौतेले भाई भर्तृहरि  ने सांसारिक जीवन का त्याग करने के  बाद तप किया किया करते थे। भर्तृहरि एक महान विद्वान और कवि थे जिन्होंने नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक नामक काव्यों की रचना की। इन रचनाओ में संस्कृत के छंदों का बेजोड़ प्रयोग किया गया है।

मंगलनाथ मंदिर 
शहर की हलचल से दूर स्थित इस मंदिर के दर्शन हेतु एक घुमावदार सड़क की सहायता लेनी पड़ती है। सामने से शिप्रा नदी का विशाल बहाव को देख कर लोंगो के मन में शांति की एक अवर्णनीय भावना का संचार होता है। मत्स्य पुराण के अनुसार, मंगलनाथ मंगल ग्रह का जन्म स्थान है। प्राचीन समय में इस जगह से मंगल ग्रह को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। इसीलिए यह जगह खगोलीय अध्ययन के लिए उपयुक्त थी। इस मंदिर में मंगलनाथ भगवान की शिवरूपी प्रतिमा का पूजन किया जाता है।  

 
कालिदास अकादमी 
इस अकादमी की स्थापना मध्य प्रदेश सरकार द्वारा महाकवि-नाटककार कालिदास की स्मृति को अमर बनाने के लिए तथा कालिदास को शीर्ष पर रखते हुए समस्त शास्त्रीय परंपरा की प्रतिभा को प्रेक्षपित करने के लिए, संस्कृत शास्त्रीय एवं पारम्परिक प्रदर्शन कला में अनुसन्धान और अध्ययन के लिए और भिन्न सांस्कृतिक परिवेश और भाषा समूहों में समकालीन मंच के लिए अनुकूलता सुविधाजनक बनाने हेतु एक बहु-विषयी संस्थान के रूप में सृजित करने के लिए उज्जैन में की गयी थी। अकादमी परिसर में थिएटर, संग्रहालय, पुस्तकालय, व्याख्यान तथा संवाद गोष्टी कक्ष, अभ्यास हेतु लघु मंच, विद्वानों के लिए अनुसन्धान सुविधाएँ और एक विशाल मुक्ताकाश मंच मौजूद है। 

राम जनादर्न मंदिर, रामघाट, हरिहरतीर्थ, मल्लिकार्जुन तीर्थ, गंगा घाट, भैरों का रोजा, बेगम का मकबरा, बिना नींव की मस्जिद तथा दिगंबर जैन संग्रहालय उज्जैन के अन्य महत्वपूर्ण स्थल हैं। 

दुर्गादास की छतरी 

आसपास के हरे परिदृश्य में स्थित यह विशिष्ट स्मारक एक छोटे से  मणि की तरह चमकता रहता है। मारवाड़ के इतिहास में अपने  त्याग , बलिदान तथा  नि: स्वार्थ सेवा से वीर दुर्गादास ने ने एक विशिष्ट स्थान प्राप्त किया है। उन्होंने  महाराज जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद जोधपुर के स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी और औरंगजेब की इच्छा के विरुद्ध अजीत सिंह को मारवाड़ के सिंहासन पर बिठाया। दुर्गादास का देहांत सन 1718 में रामपुरा में हुआ और उनकी  इच्छा के अनुसार उनकी अन्त्येष्टि शिप्रा के तट पर किया गया।  जोधपुर के राजाओं ने उनकी समृति में इस छतरी का निर्माण कराया था।  राजपुर शैली में बनाया गया इस खूबसूरत स्मारक के बीच में  दुर्गादास की प्रतिमा है।

हरसिध्दि
उज्जैन नगर के प्राचीन और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में हरसिध्दि देवी का मंदिर एक प्रमुख स्थान  है। महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियों के मध्य में अन्नपूर्णा की मूर्ति गहरे सिन्दूरी रंग में पुती हुई हैं। इस मन्दिर में श्रीयन्त्र भी प्रतिष्ठित हैं। 
शिव पुराण के अनुसार दक्ष-प्रजापति के यज्ञ में राती को यज्ञ-कुण्ड से उठाकर जब शिव ले जारहे थे तब सती की कोहनी इस स्थान पर स्थान पर गिरी थी। मन्दिर का पुनर्निर्माण मराठाकाल में हुआ और प्रांगण में दोनों दीप-स्तम्भ विशिष्ट मराठा कृति हैं. मन्दिर के प्रांगण में एक प्राचीन बावडी है। 

सिद्धवट
शिप्रा नदी के तट पर इस स्थान पर एक प्राचीन वटवृक्ष है जो कि बहुत ही विशाल है। सिद्धवट प्रयाग और गया के अक्षयवट, वृन्दावन के वंशीवट तथा नासिक के पंचवट के समान अपनी पवित्रता के लिए प्रसिध्द है। यह एक घाट पर स्थित है जिसमे हजारों तीर्थयात्री शिप्रा में स्नान करते हैं। एक मान्यता के अनुसार पार्वती ने यहाँतपस्या की थी। एक समय यह जगह नाथ सम्प्रदाय का पूजा स्थल था। 
ऐसा कहा जाता है कि मुगल शासकों ने इस वटवृक्ष को काटकर लोहे का तवा जडवा दिया गया था ताकि इसके जड़ों को फुटने से रोका जा सके। फिर भी ऐसा नहीं हो पाया और तवों को फोडकर यह फिर से हरा-भरा हो गया। 

सिद्धवट के निकट भैरोगढ़ सदियों से ब्लॉक प्रिंटिग के लिए प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में जब अन्य देशों के साथ भारत के व्यापारिक सम्बन्ध थे तब भैरोगढ़ के बने हुए वस्त्र रोम और चीन की बाज़ारों में बिकते थे। 

काल भैरव मंदिर
शैव परंपरा में अष्ट-भैरवों की पूजा का महत्व माना गया हैं तथा काल भैरव इनमें सर्व प्रमुख हैं। शिप्रा नदी के तट पर स्थित इस मंदिर का निर्माण रजा भद्रसेन ने कराया था। स्कन्द पुराण के अवन्ति-खण्ड में काल भैरव के मन्दिर का उल्लेख मिलता हैं। कापालिक तथा अघोर मत के अनुयायी शिव अथवा भैरव की आराधना करते थे। इन पंथों की साधना का सम्बन्ध उज्जयिनी से रहा हैं। आज भी काल भैरव की पूजा में लोग सुरा अर्पित करते हैं। इस मन्दिर में मालवा-शैली के सुन्दर चित्र अंकित किए गए थे जिनके अब केवल निशान पाए जाते हैं। 

सान्दीपनि आश्रम 

प्राचीन काल से ही उज्जैन अपने राजनीतिक और धार्मिक महत्व के अलावा शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है। यह तथ्य इस बात से स्पस्ट हो जाती है कि महाभारत काल में भगवान कृष्ण और सुदामा गुरु महर्षि सांदीपनि जी से शिक्षा ग्रहण करने इस आश्रम में आते थे। 
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आश्रम के निकट का क्षेत्र अंकपात कहलाता है। जनश्रुति के आधार पर कृष्ण अपने अंक लेखन की पट्टिका याँह साफ करते थे। प्राचीन काल में आश्रम का जलस्त्रोत गोमती कुण्ड था जिसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता हैं। कुण्ड के पास खडे नन्दी की प्रतिमा दर्शनीय है जो शुंगकालीन है।

गोपाल मंदिर
यह विशाल मंदिर उज्जैन शहर के मध्य व्यस्ततम क्षेत्र में स्थित है। मंदिर का निर्माण महाराजा दौलतराव सिंधिया की महारानी बायजा बाई ने 19 वीं सदी में कराया था। यह मन्दिर मराठा स्थापत्य कला का सुन्दर उदाहरण है। इस मन्दिर के गर्भगृह में सुसज्जित चाँदी का द्वार विशेष दर्शनीय है। कहा जाता है. कि यह द्वार सोमनाथ के प्रसिध्द मन्दिर से गजनी ले जाया गया था. वहाँ से मुहम्मदशाह अब्दाली इसे लाहौर लाया था। महादजी सिन्धिया ने उसे प्राप्त किया और इस मन्दिर में उसी द्वार की पुन:प्रतिष्ठा की गई है।

नवग्रह मंदिर (त्रिवेणी) 
शिप्रा नदी के त्रिवेणी घाट पर नवग्रह का यह मंदिर पुराने उज्जैन शहर से दूर स्थित है। नौ ग्रहों को समर्पित इस मंदिर में शनिचरी अमावस्या पर बडी संख्या में लोग एकत्र होते है। इस स्थान का धार्मिक महत्व वर्तमान युग में बढता गया है, यद्दपि प्राचीन शास्त्रों और ग्रंथों में इस स्थान का विषेश उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। 

महाकालेश्वर:
महाकाल शिव अपनी पूरी महिमा के साथ उज्जैन में विराजमान हैं। गगन को छूती हुई शिखरों के साथ महाकालेश्वर मंदिर श्रद्धालुओं के मन में विस्मय और श्रद्धा की भावना उत्तपन्न करता है। आधुनिक जीवन की व्यस्त दिनचर्या के बीच भी उज्जैन नगर के लोक-मानस में महाकाल की परम्परा अनादि हैं और पुराणी पूरानी परंपराओं के साथ एक अटूट कड़ी के रूप में काम करता है। 

वेधशाला
उज्जैन का खगोल विज्ञान के क्षेत्र में काफी महत्व रहा है। खगोल विज्ञान की प्रसिद्ध रचनाएँ सूर्य सिद्धांत और पांच सिद्धांत उज्जैन में ही लिखी गयी थी। भारतीय खगोलविदों के अनुसार, कर्क रेखा उज्जैन से होकर ही गुजराती है। हिंदू भूगोल शास्त्रियों के अनुसार यह रेखा देशांतर की मध्याह्न रेखा भी है। ईसा पूर्व 4 वीं शताब्दी से उज्जैन को भारत का ग्रीनविच होने का गर्व प्राप्त है। 

इस वेधशाला का निर्माण महान विद्वान सवाई राजा जयसिंह (1686-1743) ने करवाया था। राजा जयसिंह ने टॉलमी और यूक्लिड की रचनाओं का अनुवाद अरबी से संस्कृत भाषा में किया था। उनके द्वारा पांच शहरों दिल्ली, जयपुर, मथुरा, वाराणसी एवं उज्जैन में बनवाई गई वेधशालाओं में से उज्जैन की वेधशाला अभी भी कार्यरत है। शिक्षा विभाग के अन्तर्गत इस वेधशाला में ग्रह नक्षत्रों का अध्ययन आज भी किया जाता हैं तथा प्रतिवर्ष ''एफेमेरीज'' अर्थात् ग्रह की दैनिक गति एवम् स्थिति दर्शक पत्रिका प्रकाशित की जाती हैं। वहाँ एक छोटा सा तारामंडल और चाँद, मंगल, बृहस्पति और उनके उपग्रहों के निरीक्षण के लिए एक दूरबीन है। इस वेधशाला का उपयोग मौसम के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है.

विक्रम कीर्ति मंदिर:

विक्रम संवत के दूसरे सहस्राब्दी के अवसर प्रतिस्थापित विक्रमादित्य की स्मृति को संजोय रखने हेतु इस सांस्कृतिक केन्द्र के भीतर सिंधिया ओरिएंटल रिसर्च इंस्टिट्यूट,एक पुरातत्व संग्रहालय, एक कला दीर्घा तथा प्रेक्षागृह मौजूद है। सिंधिया ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट में विभिन्न विषयों पर 18,000 अमूल्य पांडुलिपियों का संग्रह है तथा यंहा महत्वपूर्ण प्राच्य प्रकाशनों का एक संदर्भ पुस्तकालय भी है। प्राकृत, अरबी, फारसी और अन्य भारतीय भाषाओं में दुर्लभ पांडुलिपियों में वैदिक साहित्य तथा दर्शन से नृत्य और संगीत तक व्यापक विषय श्रृंखला सम्मिलित है। 

इस संस्थान में खजूर पत्र तथा भोज पत्र पांडुलिपियाँ भी संरक्षित हैं। श्रीमद भागवत की एक सचित्र पांडुलिपि, जिसमें चित्रों में वास्तविक स्वर्ण और रजत का प्रयोग किया गया है, के अलावा यंहा राजपूत और मुगल शैली में पुरानी पेंटिंग्स का समृद्ध संग्रह है। नर्मदा घाटी से खुदाई में प्राप्त मूर्तियाँ, ताम्रपत्र तथा जीवाश्म यंहा रखे गए हैं। प्राचीन काल के हाथी का विशाल मस्तक विशेष रुचिकर है। 

विक्रम विश्वविद्यालय 
विक्रम विश्वविद्यालय अतीत को जानने के लिए एक प्रसिद्ध केंद्र है। 1957 में विक्रम विश्वविद्यालय की स्थापना एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। देवास रोड पर स्थित यह विश्वविद्यालय उज्जैन के साहित्यिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता ह। 

आस पास के आकर्षण
भानपुरा 
मंदसौर जिले में स्थित  भानपुरा का नाम राजा भामन के नाम पर पड़ा।  भानपुरा मंदसौर शहर से 127 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां बने एक संग्रहालय में  मंदसौर के कला की अनेक दुर्लभ वस्तुओं को देखा जा सकता है। गुप्त काल से लेकर प्रतिहार और परमार वंश तक के विभिन्न कला कृतियों के अलावा,  उमा-महेश्वर, कार्तिकेय, विष्णु और नंदी की आकर्षक तस्वीरों को भी यहां देखा जा सकता है।

देवास :
देवास इंदौर से 36 किलोमीटर की दूरी पर राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 3 पर स्थित है। देवास की पहाड़ी पर देवी चामुंडा का मंदिर प्रसिद्ध है। .

अगार 
उज्जैन से 66 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अगार पुरातात्विक महत्व एक प्राचीन स्थल है।  

नागदा:
उज्जैन से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नागदा एक औद्योगिक शहर है। यंहा आप प्राचीन मंदिरों को देख सकते हैं।

सैलाना
शायद एशिया में सबसे बड़ा संग्रह, सैलाना, रतलाम से 21 किलोमीटर दूर कैक्टस के 1200 से अधिक प्रजातियों (केवल 50 भारतीय हैं) के साथ अपने कैक्टस गार्डन के लिए प्रसिद्ध है। यह अपने व्यंजन परंपरा के भी लिए प्रसिद्ध है।

मक्सी 
उज्जैन से 39 किलोमीटर की दुरी पर स्थित मक्सी जैन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है।

गांधी सागर
मध्य प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर स्थित चंबल नदी पर बना गाँधी सागर बांध नीमच से 91 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यंहा का दृश्य बहुत ही मनलुभावन है। 

इंदौर
मध्य प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी कहलाती है। 


Yana Rock

Located in the Sahyadri mountain range of the Western Ghats, Yana is a quaint village famous for natural wonders in the form of two unique r...